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Chandravali ( चन्द्रावली ) Hindi Poetry Paperback August 2021

Original price was: ₹ 200.00.Current price is: ₹ 150.00.

Product details

  • Author               : Dr. Hariharan Sharan Tripathi “Ripudaman”
  • Pages                  : 139 pages
  • Product forum : eBook/Paper back
  • ISBN                  :- N/A
  • Item Weight     : 150 GM /Downloadable 
  • Dimensions      : 21.7 x 14.5 x 2.5 cm
  • Publisher          : Bright MP Publisher (ebook)
  • Language:        : Hindi
  • Book Genre      : Poetry
  • Seller                 : Buks Kart Online Book Store

स्मृतियाँ हाथी के पाँव की तरह मानस पटल पर ऐसी चिहिनत होकर मनुष्य के साथ-साथ चलती हैं और व्यक्त या अव्यक्त रूप में प्रकट होती रहती हैं। मन कभी भूतकाल में या भविष्य के ताने-बाने में ही व्यस्त है जिस पर अपना कोई नियंत्रण नही रहता तथापि वर्तमान में जीने की कला सीखने की आवष्यकता है मनुष्य के लिये आवश्यक है। यही आवश्यकता अनुसंधान का जन्म देती है। कोपलों के प्रस्फुटित होने के पूर्व तक भूत और भविष्य को अस्तित्व रहता है किन्तु वर्तमान में बिताया गया क्षणमात्र ही नए प्रस्फुटन की नींव डालने में सक्षम है। जब तक स्मृतियाँ समग्र चित्त को आगोश में समेटे हैं वर्तमान को प्रस्फुटन संभव नहीं होता। ऐसा भी है जहाँ अव्यक्त को शब्द देने की कोशिश हुई इसे नीरस होने से बचाने में छंदों की दीवार ढह गई किन्तु कोशिश कामयाब भी हुई। प्रकृति की इस व्यवस्ता पर मनुष्य के द्वारा बनायी गई कृत्रिम प्रकृति और उसका दोहन अनन्त कष्टों को जन्म देता है जिसे व्यक्त करना एक पीड़ा को शब्दों में पिरोना है।

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Description

इस संकलन को भाई ललित जी ने अत्यन्त सम्मोहक संपादन से पठनीय बनाया है। यह उनका मेरे प्रति स्नेह है मैं आभारी हँू। मेरे अनुज डॉ. आनन्द सिंह, डॉ. सत्यकेतु जिन्होंने प्रेरणा दी उन्हे आभार व्यक्त करना उनके प्रति स्नेह का मूल्यांकन हुआ जो समुचित नहीं लगता पर फिर भी आभार क्योंकि इस कृति को मूर्त्तरूप देने के मूल इन दोनों विद्वानों का विषेष योगदान है। मेरे सहयोगी श्रीकृष्ण पाल जिन्होंने टंकण व कम्प्यूटरीकृत किया वह मेरे मन में सदैव सम्मान के भागीदार रहेंगे। यह पुस्तक पत्नि डॉ. उषा त्रिपाठी के सहयोग के बिना आ नही सकती थी यह उनकी ही प्रेरणा व प्रेम का परिणाम है। डॉ प्रियशा व प्रहर्ष मेरी पुत्री व पुत्र के प्रति प्रेम से ही शब्दों को गढ़ा जा सका यह दोनों तो मेरे भाग हैं। अंत में मेरे समस्त दोस्तों के प्यार सहित यह आपके समक्ष प्रस्तुत है।
लेखक-डॉ. हरिहर शरण त्रिपाठी “रिपुदमन”

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