Khorthak Ghardinda (खोरठाक घरड़िंड़ा) Paperback Hindi 2021

 280.00

Books details

Author Tarkeshwar Mahato
Pages 186
Book Format Paperback
ISBN 13 978-81-950286-4-1
Dimensions 21.7 x 14.5 x 0.7 cm
Item weight 200 gm
Langauge Hindi (Khortha)
Publishing Year First Ed. 2021
Book Genre Regional Language
Publisher Bright MP Publisher
Seller Buks Kart “Online Book Store”

इस पुस्तक में लेखक तारकेश्वर महतो ‘‘गरीब’’ के द्वारा झारखण्ड राज्य की 11 भाषाओं में द्वितीय राजभाषा ‘‘खोरठा’’ के बारे में एक महत्वपूर्ण अनुसंधान संधारित किया गया है। झारखण्ड एक बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक एंव बहुभाषी राज्य है जो भाषा-संस्कृति, नेगाचारि, मानववाद, समतावाद, श्रमशीलता और उच्चतर सामाजिक व मानवीय मूल्यों का पृष्ठपोषक है । खोरठा भाषा को झारखण्ड की जनजातीय एंव क्षेत्रीय भाषा के अन्तर्गत क्षेत्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई है। खोरठा मुख्य रूप से झारखण्ड के सदानों की भाषा है, साथ ही यह अपने क्षेत्र के कई जनजाति समुदायों की भी मातृभाषा होकर दो पृथक भाषी समुदायों एंव जनजाति और सदानों के बीच सम्पर्क भाषा के रूप मे पीढ़ी दर पीढ़ी से प्रचलित है । खोरठा भाषा किसी जाति, धर्म, समुदाय विशेष की नहीं है, बल्कि प्रकृति, संस्कृति, सभ्यता एंव मानववाद का प्रतीक है । खोरठा भाषा झारखण्ड में एक अनुमान के अनुसार 48 हजार वर्ग किलोमीटर परन्तु वर्तमान मे 51 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बोली जाती है और खोरठा भाषा बोलने वाले की संख्या अनुमानित 1 करोड 40 लाख 61 हजार है । खोरठा भाषा झारखण्ड के तीन प्रमण्डल उत्तरी छोटानागपुर, संथाल परगना और पलामू प्रमंडल के 16 जिले बोकारो, धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग, रामगढ, चतरा, कोडरमा, दुमका, गोड्डा, देवघर, पाकुड, जामताड़ा, साहेबगंज, लातेहार, पलामू और गढवा में बोली जाती है । इसके साथ ही झारखण्ड राज्य के अतिरिक्त देश के अन्य प्रदेशों पश्चिम बंगाल, बिहार, आसाम, अंडमान एवं विदेशों में मॉरीशस में बोली जाती है। खोरठा भाषा के छः क्षेत्रिय भेद (रूप) हैं सिखरिया, गोलवारी, रामगढिया, देसवाली, पारनदिया एंव संथाल परगनिया।

Note : यह पुस्तक मुख्य रूप से JPSC, JSSC, JTET, शिक्षक बहाली, झारखंड पुलिस आदि परीक्षाओं एंव B.A, M.A के लघु शोध के लिए उपयोगी है ।

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Description

तारकेश्वर महतो ‘‘गरीब’’ खोरठा भाषा के जाने माने लेखक हैं जिनके द्वारा खोरठा भाषा के विकास एवं अनुसंधान कार्य को जारी रखा हुआ है। खोरठा भाषा को आम लोगों तक पहुँचाने तथा सुलभ तरीके से सीखने-सिखाने का तरीका भी बताया गया है। लेखक के द्वारा अभी तक इस भाषा के सम्बन्ध में खोरठा मांय माटी (वस्तुनिष्ठ) दिसम्बर 2017 तथा पारसनाथेक गोड़ा (खोरठा कविता संग्रह) दिसम्बर 2019 में लेख की गई हैं जिन्हें आमजन व भाषा प्रेमियों के द्वारा काफी सराहा गया है। यह लेखक की तृतीय पुस्तक है जिसमें लेखक के द्वारा खोरठा भाषा के बारे में सरलतम् तरीके से खोरठा भाषा के साहित्यकारों व उनकी कृतियों के बारे में जानकारी देकर समझाया गया है। लेखक के द्वारा खोरठा भाषा को लेकर कई लेख, निबंध, एकांकी व कविताएँ भी लेख की गयीं हैं जो विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। महुआ खोरठा भाषी पत्रिका के संपादन सहयोगी भी हैं।

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